Tuesday, September 13, 2011

मैं मानता हूँ की

अरे गूगल ग्रह के निवासियों !!
हाँ मैं तुमसे कह रहा हूँ |
मस्तिष्क के सीमा का विस्तार करो ,
निकालो अपने को सर्च बॉक्स के घेरे से ,
और दूंढ निकालो कुछ नए नवेले आविष्कार ,
मस्तिष्क के घने आपार , अनजान , विस्तृत अँधेरे से |
मैं मानता हूँ की नैनो सेकंडो का काम नहीं है ये ,
पर आविष्कारो को जन्म देना भी , मशीनों का व्यायाम नहीं है |

कट-कॉपी-पेस्ट के व्यापार को हमे छोड़ना होगा ,
और नविन चिंतन के तकनीकियों से जुड़ना होगा |
मैं मानता हूँ की इस अभ्यास से निकलने में समय लगेगा ,
पर अभ्यास भी मशीन नहीं मनुष्य ही करेगा |

गूगल को तुम अपने घर में कभी कभी आने वाले विद्वान की तरह देखो ,
उससे राह पूछो , मंजिल नहीं |
मैं मानता हूँ की मंजिल ही अगर मिल जाये तो राह की जोखिम क्यों उठाये ?
पर अनजानी राह पर गिरते , पड़ते , संभलते चलना और मंजिल पाना भी मशीनों का काम नहीं |

- कमल कान्त गुप्ता
पि० जि० टि० कम्प्यूटर साइंस