Monday, November 7, 2011

छात्र और भूत की वार्तालाप

कल दिन में, मैं बाई-गाड़ !! भूत से मिला |
हाँ वही भूत जो मुझे सपनो में कई सालों से हा हा करके डराता था |
उसने हाथों में किताबें लीं हुईं थीं , कानों में मोटा चश्मा लगा ,
भंयकर सी सूरत बनाये, मेरे ओर चला आ रहा था |
मैं डर गया , सहम गया , की अब ये भूत अपनी भूतकाल की बातें कह मुझे डराएगा और,
मेरे अज्ञानता की मज़ाक-ठिठोली उडाएगा | बड़ा ही कठोर था यह भूत!!!

मैंने मन ही मन में सोचा ,
मैं तो यही जानता था कि , भूत बड़े ही फ्लेक्सिवल होते है |
हर रूप धर सकते है , हर राज़ जान सकते है |
तो क्यों नहीं ? ये भूत भी कुछ ऐसा रूप धरे ,
जिसे देख मेरा मन न डरे |

भूत जान चूका था मेरे मन की बात, कुटिल मुस्कान भरे ,
लाल लाल खौफनाक निगाहों से भूत ने मेरी ओर देखा और कहा ,
फ्लेक्सिवल हुए तो डराने वाली सिलेबस पीछे छूट जाएगी ,
और भूतों की टोली में हमारी नाक कट जाएगी |

मैंने डरते हुए पूछा : भूत होकर भी क्यों डरते हो ? ,
अगर हमें अपनी भूतविद्या से वर्तमान में रहते हुए भविष्य की कल्पना करने का हुनर सिखाओगे ,
तो जल्द ही अपने इस भूतयोनी से छूटकर पाओगे |
और अगर नहीं करोगे ये , तो भविष्य में हमें भी अपने टोली में भूत बना शामिल पाओगे |

हम भी भूत बनकर भविष्य को डरायेंगे और ,
धीरे धीरे सारे देश को भूतों का डेरा बनायेंगे |
अगर नहीं चाहते हो ये तो, सिलेबस के मापदंड से निकलो,
हमे बिना डराए , भविष्य की कल्पना करना सिखाओ ,
अतः खुद को धन्य करो , और हमे भी भूत बनने से बचाओ |

4 comments:

Anonymous said...

gud sir! is'nt it about a teacher(bhoot)?

KKG said...

yes ravali it is about us only.

Apurva Maharana said...

bahut aachi hai sir..

Apurva Maharana said...
This comment has been removed by the author.