Wednesday, February 13, 2008

मौसम से बातें


मौसम से बातें

कल से ये हवा ने ना जाने क्या,
बेरुखी सी अपनाई है
जहाँ कल मौसम लेता था मस्ती की, अंगडाई सी ,
आज सिर्फ़ तनहाई है; और तनहाई है
ना जाने कहाँ से हवा ने झूटपुट ,
सी अश्क पाई थी
सूर्य की उष्मा से ये धरती,
तू ना सहलाई थी ?
ले गया ये बादल मेरे उष्मा के,
उस स्रोत को ;
जिसकी ठंडी धुप में मैं ,
चल रहा था , पल रहा था
और छोड़ गया मुझे उस लौ में ,
तप्त होने को ;
जो उसकी थी ,
और मैनें पाई थी
लोग मुझे कहते है बीमार ,
पर ये है सिर्फ़, उस धुप का खुमार ,
बताओ ! बताओ की कब धुप में , फसल उगाने वाले ने ,
छाए में जश्न मनाई थी

- कमल कान्त गुप्ता

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